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जीवन सफ़र
सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र रास्तों के काँटे अपने अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...
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सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र रास्तों के काँटे अपने अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...
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जाने कब कैसे ख्वाबों के पंख मिले; जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले. जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है; मुझको जीवन से बदले में आह म...
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कितने सारे दर्द हैं जिनको जीता हूँ दुनिया कहती है मैं बड़ा हो गया हूँ खुश होता हूँ मैं जब बच्चा होता हूँ माँ फिर से अपना आँचल क...
आभार!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति... सुप्रभात!
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसहृदय आभार!!!
Deleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteएकदम सही..
ReplyDeleteअति उत्तम रचना..
:-)
जी बहुत बहुत आभार!!!
Deleteबिलकुल सही फ़रमाया आपने .
ReplyDeleteसहृदय आभार!!!!
Deleteमेरी रचना ज्यादे लोगों तक पहुँचाने के लिए आपका आभार !!!
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने | आभार |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- ओ कलम !!
बहुत बहुत आभार !!!
Deleteसत्य हा आदमी आदमी को कहां पहचान रहा है.. http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!!
Deleteबेहद सुन्दर रचना....
ReplyDeleteश्री प्रकाश जी आपका सहृदय आभार !!!
Deleteहौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.
प्रणाम!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!
Deleteप्रणाम!