Thursday 25 December 2014

ठहराव














माँ का गर्भ
सुंदर जीवात्मा
मानव शरीर


दृष्टि ठहरी
दुनिया देखने
और पहचानने की


ठहरे और
ठिठके कदम
डग भरने को


हृदय प्रेम
ठहराव साँसों का
प्रेम अनुभूति


प्रथम कदम
वाषना प्रधान
ठहराव शरीर


गहन अनुभूति
प्रेम की उचईयाँ
ठहराव प्रेम


जीवन ठहराव
संगीत नृत्य प्रेम
परमात्मा


आत्मा परमात्मा
एक ही ठाँव
एक में ठहराव


साँसें उखड़ती
मृत्यु सजग
नयी यात्रा का पड़ाव

ठहराव

2 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-12-2014) को "वास्तविक भारत 'रत्नों' की पहचान जरुरी" (चर्चा अंक-1840) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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