Friday 16 October 2015

कविता

समाज की गहरी मानसिकता को उभारती,
और गहरे से एक दूसरे से गूँथती
कविता जो हृदय पर उकेर देती है
सजीव भावनाओं के चित्र
भर देती है उमंग से
साहस से लबरेज़ करती कविता
जीवन के कठिनाइयों से शतर्क करती कविता
कविता जो कहती है हार मत मानना
लड़ते रहना विषमताओं से
कि बाँधा सको हिम्मत
आने वाले कल में
क्यों की मानव की खाल ओढ़े
जानवर आज भी हैं
कल भी होंगे।

5 comments:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  2. उम्दा रचना

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